एस्सार स्टील के लिए आर्सेलर मित्तल के जिस रिजॉल्यूशन प्लान को क्रेडिटर्स की कमेटी ने मंजूर किया था, अगर वह लागू हो जाता तो एसबीआई को 11,313 करोड़ रुपये मिले होते। एसबीआई ने हालांकि लोन बेचने के लिए मिनिमम रिजर्व प्राइस इससे भी कम रखा है।
भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने एस्सार स्टील को दिया गया 15,431 करोड़ रुपये का समूचा कर्ज बेचने का निर्णय कर लिया है। उसने तय किया है कि लोन खरीदने वाले से वह कम से कम 9588 करोड़ रुपये लेगा। यानी SBI पूरे कर्ज का एक तिहाई से ज्यादा हिस्सा हाथ से जाने देने को तैयार है। हालांकि उसके इस निर्णय से यह भी पता चलता है कि वह जितना भी हो सके, अपना पैसा जल्द से जल्द वापस पाना चाहता है। एस्सार स्टील पर बकाया इस लोन के लिए एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियां, नॉन-बैंकिंग फाइनैंस कंपनियां, दूसरे बैंक और फाइनैंशल इंस्टीट्यूशंस बोली लगा सकते हैं।
स्सार स्टील के लिए आर्सेलर मित्तल के जिस रिजॉल्यूशन प्लान को क्रेडिटर्स की कमेटी ने मंजूर किया था, अगर वह लागू हो जाता तो एसबीआई को 11,313 करोड़ रुपये मिले होते। एसबीआई ने हालांकि लोन बेचने के लिए मिनिमम रिजर्व प्राइस इससे भी कम रखा है।
एक तिहाई से ज्यादा बकाया रकम छोड़ने का एसबीआई का निर्णय बता रहा है कि उसे एस्सार स्टील पर कर्ज का मामला जल्द सुलझता नहीं दिख रहा है। बैंकरप्सी रिजॉल्यूशन फ्रेमवर्क के तहत नैशनल कंपनी लॉ-ट्राइब्यूनल में लाए गए मामलों में से करीब 70 % का निपटारा इनसॉल्वेंसी के संशोधित रेग्युलेशंस के मुताबिक तय डेडलाइन पर नहीं हो सका है।
एसबीआई के एक सीनियर अधिकारी ने कहा, 'हमने रिजॉल्यूशन का काफी इंतजार किया है। इंतजार की एक सीमा होती है।' उन्होंने कहा, 'एस्सार स्टील की बिक्री जल्द पूरी होती नहीं दिख रही है क्योंकि एनसीएलटी के आदेश के बाद इसे एनसीएलएटी में चुनौती दी जा सकती है और फिर उसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है। हमें उम्मीद है कि ऐसा बायर मिल जाएगा, जो हमें दूसरे तरीके से हासिल हो सकने वाली वैल्यू का करीब 85 प्रतिशत हिस्सा दे देगा। यह रकम इस लोन के लिए हमारी प्रोविजनिंग से ज्यादा होगी।'
एस्सार स्टील का मामला 500 से ज्यादा दिनों से चल रहा है। इनसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड के तहत किसी भी मामले के निपटारे के लिए अधिकतम 270 दिन तय हैं। दूसरे क्वॉर्टर में एसबीआई का नेट प्रॉफिट सालभर पहले के मुकाबले 40 प्रतिशत घटकर 945 करोड़ रुपये पर आ गया था। ऐसा एसेट क्वॉलिटी में कुछ सुधार होने के बावजूद हुआ था।
एसबीआई की ऑक्शन वेबसाइट पर एक नोटिस में कहा गया कि रिजर्व प्राइस को 18 % डिस्काउंट के साथ मिनिमम रिकवरी की नेट प्रजेंट वैल्यू के आधार पर एक साल का टाइम फैक्टर ध्यान में रखते हुए तय किया गया। बैंक ने एक क्लॉबैक ऑप्शन का जिक्र भी किया है और कहा कि अगर रिजॉल्यूशन प्रोसेस सालभर के भीतर पूरा हो गया तो बायर्स को रिजर्व प्राइस से ज्यादा रकम चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए।
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